कराची – पाकिस्तान के मशहूर कव्वाल अमजद फरीद साबरी अब हमारे बीच नहीं रहे. 45 साल के साबरी को कराची में अज्ञात हमलावरों ने दिनदहाड़े गोलियों से भून दिया. ‘भर दो झोली मेरी या मुहम्मद’ ‘ताजदार-ए-हरम’ जैसी शानदार कवाली गाने वाली अमजद अली की मौत की खबर से तमाम सूफी समुदाय शोक में डूब गया है.
रमजान के पाक महीने में हुई इस घटना से संगीत की दुनिया शोक में डूब गई है. चिश्ती परंपरा के सूफी गायक साबरी ब्रदर्स का ताल्लुकपाकिस्तान से है. इस सूफी कव्वाली पार्टी को बनाने वाले दिवंगत हाजी गुलाम फरीद साबरी और उनके छोटे भाई दिवंगत हाजी मकबूल अहमद साबरी थे. उत्तर भारत और पाकिस्तान में मशहूर कव्वाली को इन दो भाइयों ने ही दुनियाभर में पहचान दिलाई. पश्चिमी देशों में इनका पहला शो अमेरिका में हुआ, जब 1975 में न्यूयॉर्क के कार्नेजी हॉल में इन्होंने परफॉर्मेंस दिया.
‘बजरंगी भाईजान’ के एक गाने पर हुआ था विवाद
सलमान खान की फिल्म ‘बजरंगी भाईजान’ के एक गाने को लेकर साबरी चर्चा में रहे थे. उन्होंने आरोप लगाया था कि उनके दिवंगत पिता गुलाम फरीद साबरी की प्रसिद्ध कव्वाली ‘भर दो झोली’ को ‘बजरंगी भाईजान’ में उनकी इजाजत के बिना शामिल किया गया.
समाज कल्याण के कामों में थी दिलचस्पी
उनकी शख्सियत का अहम पहलू यह भी है कि संगीतकारों के घराने से ताल्लुक रखने वाले अमजद साबरी महज संगीत की दुनिया तक ही सीमित नहीं रहे. वो समाज कल्याण के दूसरे कामों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे. चाहे वो कलाकारों के हक की बात हो या कलाकारों के जश्न का मौका, अमजद साबरी ऐसे कार्यक्रमों में जरूर भाग लेते थे.